Monday, 2 July 2018

साकार-निराकार की बहस बेमानी



देवेंद्र गौतम

अध्यात्म की दुनिया में इस बात को लेकर लंबे समय से बहस चलती आ रही है कि ब्रह्म साकार है अथवा निराकार। यह बहस सिर्फ विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच की नहीं है। इस सवाल पर हिंदू समुदाय भी विभाजित रहा है। उर्दू के प्रसिद्ध शायर मीर तकी मीर ने इस सवाल का जवाब मात्र एक शेर में दिया है। उनका शेर है-
इबादत की यां तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सबों की ख़ुदा कर चले।
इस शेर के जरिए उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि जब किसी साकार माध्यम पर ध्यान केंद्रित किया जाता है तो वह चेतना को निराकार तक पहुंचा देता है। एक औसत चेतना के मनुष्य की चेतना को सीधे शून्य में केंद्रित नहीं किया जा सता।  निराकार ब्रह्म तक पहुंचने के लिए हमेशा एक माध्यम की जरूरत होती है। चाहे वह प्नत्यक्ष हो अथवा परोक्ष। निराकार ब्रह्म के उपासक परोक्ष माध्यम का इस्तेमाल करते हैं जबकि साकार ब्रहम के उपासक प्रत्यक्ष माध्यम का। मूर्ति पूजा प्रत्यक्ष माध्यम है। इसके मानने वाले अपने ईष्ट पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन जबतक आंख खुली है तभी तक वह साकार रहता है। सिर्फ साकार में आस्था रखने वाले भी ईस्वर के प्रकट होने की बात करते हैं। प्रकट तो निराकार ही हो सकता है। साकार तो चसकर स्वयं आ सकता है उसके प्रकट होने का क्या मतलब।  किसी साकार वस्तु पर बहुत देर तक आंख गड़ाए रखने के बाद आंख बंद करने पर कुछ देर तक उसका  प्रतिबिंब दिखाई देता है वह प्रतिबिंब साकार नहीं निराकार होता है। इस तरह वह उपासना के जरिए साकार से निराकार की ओर अपनी चेतना को ले जाने का अभ्यास करता है। मुसलिम समुदाय के लोग दुनिया के जिस भी हिस्से में रहें, मक्का मदीना की ओर रुख करके नमाज अदा करते हैं। उस समय उनका ध्यान मक्का मदीना की ओर केंद्रित होता है। यानी वे मूर्ति पूजा का विरोध तो करते हैं, उसका मखौल तो उड़ाते हैं लेकिन स्वयं भी निराकार तक पहुंचने के लिए एक अप्रत्यक्ष माध्यम का इस्तेमाल करते हैं। मक्का मदीना उनके लिए अप्रत्यक्ष माध्यम का काम करता है। ईसाई लोगों के गिरिजाघरों में भी माता मरियम की मूर्ति और क्रास का चिन्ह होता है जो प्रार्थना के समय माध्यम का काम करता है। निराकार ब्रहम कण-कण में विराजमान बताया जाता है फिर उसकी उपासना के लिए किसी दिशा, किसी विशेष स्थान की अनिवार्यता क्यों। मुख्य चीज होती है चेतना को सूक्ष्मतम अवस्था तक ले जाना। निभिन्न धर्मों में इसके लिए अलग-्अलग तकनीक बताई गई है। लक्ष्य एक है उसकी प्राप्ति के  उपादान अलग हैं।  दुनिया में कोई समुदाय ऐसा नहीं है जिसमें इनसान सूक्ष्मतम चेतना के साथ जन्म लेते हों। सबकी चेतना को अतृप्त इच्छाएं और प्रतिकूल स्थितियां स्थूलता की ओर खींचती हैं जबकि आध्यात्मिक ज्ञान और साधना सूक्ष्मता की ओर। मनुष्य के साथ चाहे वह आस्तिक हो अथवा नास्तिक किसी न किसी रूप में आजीवन चेतना का यह संघर्ष चलता रहता है। लिहाजा साकार और  निराकार की बहस बेमानी है।

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